
पं. श्याम व्यास
अवंतिका कर्मकाण्ड ज्योतिषाचार्य07879527922
आपकी कुंडली में कालसर्प दोष योग हैं, या नहीं इस बात का पता कुंडली में गृहो की स्थिति के द्वारा पता लगाया लगा जा सकता है, लेकिन कई बार सामान्य त्रुटि के कारण गलत हो जाती है। जैसे: जन्म समय एवं तिथि का सही ज्ञान नहीं होने पर और इस तरह की स्थिति होने पर कालसर्प योग आपकी कुण्डली में हैं, या नहीं इसका पता कुछ विशेष लक्षणों से जाना जा सकता है। जैसे: स्वप्न में मरे हुए लोग दिखाई देने, परछाई दिखाई देना, नदी दिखाई देना आदि लक्षणों के द्वारा इसका पता लगाया जा सकता है।
प्राचीन संस्कृति मन्त्रों में से एक, महा मृत्युंजय मंत्र त्रयंबकम मंत्र के रूप में जाना जाता है, जो महान मृत्यु को जीतने का मंत्र है। मंत्र कई नाम और रूप हैं। यह कभी कभी भगवान शिव के उग्र सामना करने के लिए सन्दर्भ के साथ, रुद्र मंत्र कहा जाता है। यह त्रयंबकम मंत्र कहा जाता है, जब दूसरी ओर तो यह भगवान शिव की ओर इशारा करते तीन आँखों में जाना जाता है। यह जीवन की बात आती है। महामृत्युंजय मंत्र के बाद जप से दोष, कष्ट को दूर किया जा सकता है, और मृत्यु पर विजय प्राप्त की जा सकती है। शत्रुओं को पराजित किया जा सकता है। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा ∫ मृतात् ।।
नारायण नागबलि ये दोनो विधी मानव की अपूर्ण इच्छा और कामना को पूर्ण करने के उद्देश्य से की जाती है, इसलिए ये दोनों विधि कम्यु कहलाती है। नारायणबलि और नागबलि ये अलग-अलग विधियाँ है। नारायण बलि का उद्देश मुखतः पितृदोष निवारण करना है, और नागबलि का उद्देश सर्प/ साप/ नाग हत्या का दोष निवारण करना है। केवल नारायण बलि यां नागबलि कर नहीं सकते, इसलिए ये दोनों विधियां एकसाथ ही करनी पड़ती हैं। ये कर्म किस प्रकार व कौन इन्हें कर सकता है, इसकी पूर्ण जानकारी होना अति आवश्यक है।
अभिषेक का मतलब होता है, स्नान करना। यह स्नान भगवान शंकर को उनकी प्रसन्नता हेतु जल एवं रूद्र मंत्र के साथ करवाया जाता है, इसलिए इसे रुद्राभिषेक कहा जाता हैं। साधारण रूप से अभिषेक या तो जल या गंगाजल से होता है। परंतु विशेष अवसर एवं विशेष प्रयोजन हेतु दूध, दही, घी, शकर, शहद, पंचामृत आदि वस्तुओं से किया जाया है। रुद्राभिषेक करने से बांधा और दोष को भी दूर किया जा सकता है। शिव को रूद्र इसलिए कहा जाता है, ये रूप अर्थात दुःख को नष्ट कर देते है। इसके जप, पाठ से तथा अभिषेक आदि साधनों से भगवद्भक्ति, शांति, पुत्र. पौत्रादि की वृद्धि, धन-धान्य की सम्पन्नता, तथा स्वास्थय की प्राप्ति होती है। वहीँ परलोक में सद्गति एवं परमपद (मोक्ष) भी प्राप्त होता है। रूद्राभिषेक परम पवित्र तथा धन, यश और आयु की वृद्धि करनेवाला है। अपने कल्याण के लिए भगवान सदाशिव की प्रसन्नता के लिए निष्काम भाव से पूजन करना चाहिए, इसका अननत फल होता है। सब प्रकार की सिद्धि के लिए रूद्राभिषेक करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है।